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उस ने माइल-ब-करम हो के बुलाया है मुझे - गोपाल मित्तल कविता - Darsaal

उस ने माइल-ब-करम हो के बुलाया है मुझे

उस ने माइल-ब-करम हो के बुलाया है मुझे

आज फिर दिल ने ये अफ़्साना सुनाया है मुझे

सर्द-मेहरी पे भी होता है तवज्जोह का गुमाँ

इस तरह उस ने तवक़्क़ो' पे लगाया है मुझे

यूँ तो फ़ितरत में भी आशुफ़्ता-मिज़ाजी थी मिरी

अस्ल में आप ने दीवाना बनाया है मुझे

पर्दा-दारी थी उसे रब्त-ए-निहाँ की मंज़ूर

बज़्म में अपनी बहुत दूर बिठाया है मुझे

ये मिरे ज़ो'म-ए-बुलंदी की सज़ा है शायद

उस ने कुछ सोच के नज़रों से गिराया है मुझे

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