शे'र कहने का मज़ा है अब तो
शे'र कहने का मज़ा है अब तो
दिल का हर ज़ख़्म हरा है अब तो
इतना बे-सर्फ़ा न था दिल का लहू
बाग़ दामन पे खिला है अब तो
बुझ ही जाए न कहीं दिल का चराग़
वाक़ई तुंद हवा है अब तो
ज़िंदगी ज़िंदगी होती थी कभी
मर न जाने की सज़ा है अब तो
था कोई शख़्स कभी महरम-ए-दिल
वो मुझे भूल चुका है अब तो
ख़ूगर-ए-शहर हुए दीवाने
चाक-ए-दामन भी सिया है अब तो
दिल का ये हाल हमेशा तो न था
जाने क्या मुझ को हुआ है अब तो
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