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किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें - गोपाल मित्तल कविता - Darsaal

किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें

किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें

किस का चेहरा नहीं मिन्नत-कश-ए-ग़ाज़ा देखें

जो मुक़द्दर है वो अंजाम-ए-तमन्ना देखें

दिल-ए-वहशत-ज़दा चल आज उसे जा देखें

दिल ये कहता है कि हुस्न उस का जहाँ-ताब भी हो

और फिर ये भी है कि हम ही उसे तन्हा देखें

आओ कुछ जश्न-ए-शहादत ही में शिरकत हो जाए

अपनी खिड़की ही से मक़्तल का नज़ारा देखें

कौन मंजधार में जाए सर-ए-साहिल बैठें

दूर से डूबने वालों का तमाशा देखें

अब भी होता है वहाँ ज़िक्र हमारा कि नहीं

आलम उस बज़्म का अब क्या है ज़रा जा देखें

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