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आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई - गोपाल कृष्णा शफ़क़ कविता - Darsaal

आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई

आते ही जवानी के ली हुस्न ने अंगड़ाई

इस सम्त गिरी बिजली उस सम्त क़ज़ा आई

जिस सम्त से गुज़रा हूँ आवाज़ यही आई

दीवाना है दीवाना सौदाई है सौदाई

भूले ही से आ जाओ महकी हुई रातें हैं

बरसात का मौसम है डसती हुई तन्हाई

सच्चाई के दीवाने चढ़ते हैं सलीबों पर

सदियों से ज़माने में ये रस्म चली आई

आलाम-ओ-मसाइब का चढ़ता हुआ दरिया है

ऐ जोश-ए-तवानाई ऐ जोश-ए-तवानाई

अब कौन सुने बातें बहके हुए वाइ'ज़ की

चलते हैं 'शफ़क़' हम तो वो काली घटा आई

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