Love Poetry of Ghulam Murtaza Rahi
नाम | ग़ुलाम मुर्तज़ा राही |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Murtaza Rahi |
जन्म की तारीख | 1937 |
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमार
अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला
मौजूदगी का उस की असर होने लगा है
हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे
फ़राख़-दस्त का ये हुस्न-ए-तंग-दस्ती है
बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और
बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ