ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
कोई ज़माना था मेरा गुज़र गया वो भी
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(804) Peoples Rate This
कितना भी रंग-ओ-नस्ल में रखते हों इख़्तिलाफ़
अब मिरे गिर्द ठहरती नहीं दीवार कोई
हम-सरी उन की जो करना चाहे
साँसों के आने जाने से लगता है
एक दिन दरिया मकानों में घुसा
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला
मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा
पुरखों से चली आती है ये नक़्ल-ए-मकानी
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता