साँसों के आने जाने से लगता है
इक पल जीता हूँ तो इक पल मरता हूँ
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यूँही बुनियाद का दर्जा नहीं मिलता किसी को
पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ
न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती है
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
देखने सुनने का मज़ा जब है
सहरा जंगल सागर पर्बत
पहले चिंगारी उड़ा लाई हवा
रहेगा आईने की तरह आब पर क़ाएम
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
नायाब चीज़ कौन सी बाज़ार में नहीं