मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
आइनों ने भी हक़ीक़त से मुकरना चाहा
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
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Friends Poetry
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हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमार
पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए
राह से मुझ को हटा कर ले गया
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
एक दिन दरिया मकानों में घुसा
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
दूसरा कोई तमाशा न था ज़ालिम के पास
अपनी क़िस्मत का बुलंदी पे सितारा देखूँ
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
मैं तिरे वास्ते आईना था