कुछ ऐसे देखता है वो मुझे कि लगता है
दिखा रहा है मुझे मेरा आइना कुछ और
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नायाब चीज़ कौन सी बाज़ार में नहीं
ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ
फ़राख़-दस्त का ये हुस्न-ए-तंग-दस्ती है
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
दूसरा कोई तमाशा न था ज़ालिम के पास
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
राह से मुझ को हटा कर ले गया
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे
पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ