एक दिन दरिया मकानों में घुसा
और दीवारें उठा कर ले गया
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जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह
राह से मुझ को हटा कर ले गया
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
एक इक लफ़्ज़ से मअनी की किरन फूटती है
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
सहरा जंगल सागर पर्बत
नायाब चीज़ कौन सी बाज़ार में नहीं
पस्त-ओ-बुलंद में जो तुझे रिश्ता चाहिए
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
किसी ने भेज कर काग़ज़ की कश्ती