देखने सुनने का मज़ा जब है
कुछ हक़ीक़त हो कुछ फ़साना हो
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(663) Peoples Rate This
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
अपनी तस्वीर के इक रुख़ को निहाँ रखता है
झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा
हम-सरी उन की जो करना चाहे
कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
कहाँ तक उस की मसीहाई का शुमार करूँ
जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
कुछ ऐसे देखता है वो मुझे कि लगता है
रहेगा आईने की तरह आब पर क़ाएम
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला