अब मिरे गिर्द ठहरती नहीं दीवार कोई
बंदिशें हार गईं बे-सर-ओ-सामानी से
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कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर
गर्मियों भर मिरे कमरे में पड़ा रहता है
उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया
कहाँ तक उस की मसीहाई का शुमार करूँ
जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
दिल ने तमन्ना की थी जिस की बरसों तक
राह से मुझ को हटा कर ले गया
मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी
मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू
ऐ मिरे पायाब दरिया तुझ को ले कर क्या करूँ
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा