उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

खुला जो राज़-ए-सुकूत लब पर तो मैं ने देखा

उतर गया रंग-ए-रू-ए-मंज़र तो मैं ने देखा

हटी निगाह-ए-बहार यकसर तो मैं ने देखा

न जाने कब से वो अंदर अंदर सुलग रहा था

मिला जो दीवार में मुझे दर तो मैं ने देखा

तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार दिल से निकल चुका था

बरस चुका अब्र-ए-अश्क खुल कर तो मैं ने देखा

निशान क़दमों के रास्ते में चमक रहे थे

गुज़र गया वो नज़र बचा कर तो मैं ने देखा

मिला के मिट्टी में रख दी उस ने इबादत उस की

जो मेरे आगे न ख़म किया सर तो मैं ने देखा

(695) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha In Hindi By Famous Poet Ghulam Murtaza Rahi. Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha is written by Ghulam Murtaza Rahi. Complete Poem Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha in Hindi by Ghulam Murtaza Rahi. Download free Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha Poem for Youth in PDF. Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha is a Poem on Inspiration for young students. Share Ubal PaDa Yak-ba-yak Samundar To Maine Dekha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.