Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a621f069125fab0f859d947252599b14, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे - ग़ुलाम मुर्तज़ा राही कविता - Darsaal

शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे

शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे

मेरे आगे पीछे दाएँ बाएँ वीरानी रहे

सारी सम्तें आ के जिस मरकज़ पे हो जाती हैं एक

ख़म उसी जानिब हमेशा मेरी पेशानी रहे

आगे आगे मैं तिरा परचम लिए चलता रहूँ

अर्ज़-ए-दिल पर मेरे क़ाएम तेरी सुल्तानी रहे

रौशनी को हो मिरी ऐसा कोई माख़ज़ अता

ज़र्रा-ए-नाचीज़ में दिन रात ताबानी रहे

नेज़ा-ओ-शमशीर-ओ-ख़ंजर की अगर इफ़रात है

ख़ून की भी मेरी रग रग में फ़रावानी रहे

मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू

ऐ मिरे दरिया! हमेशा तुझ में तुग़्यानी रहे

अब तजावुज़ बन गया मामूल वर्ना मुद्दतों

अपनी अपनी हद में शहरी और बयाबानी रहे

(770) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe In Hindi By Famous Poet Ghulam Murtaza Rahi. Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe is written by Ghulam Murtaza Rahi. Complete Poem Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe in Hindi by Ghulam Murtaza Rahi. Download free Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe Poem for Youth in PDF. Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe is a Poem on Inspiration for young students. Share Shakl Sahra Ki Hamesha Jaani-pahchani Rahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.