मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

जाने इस राह में मर्ज़ी-ए-ख़ुदा कैसी थी

जिस को हंगामा-ए-हस्ती ने उभरने न दिया

जिस को हम सुन नहीं पाए वो सदा कैसी थी

मेरा आईना-ए-एहसास शिकस्ता था अगर

सूरत-ए-हाल मिरी तू ही बता कैसी थी

अब जो आज़ाद हुए हैं तो ख़याल आया है

कि हमें क़ैद भली थी तो सज़ा कैसी थी

लहलहाता था मिरे दिल का इलाक़ा 'राही'

जाने उस वक़्त यहाँ आब-ओ-हवा कैसी थी

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