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हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे - ग़ुलाम मुर्तज़ा राही कविता - Darsaal

हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे

हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे

फैलेगा अभी और बयाबाँ मिरे आगे

बाहर नहीं कोई भी मिरी हद-ए-नज़र से

मख़्फ़ी है कोई कोई नुमायाँ मिरे आगे

हस्ती मिरी सहरा है सराब उस का मुक़द्दर

आख़िर उसे होना है पशेमाँ मिरे आगे

हूँ मील के पत्थर की तरह राहगुज़र में

मंज़िल पे नज़र रखते हैं इंसाँ मिरे आगे

तय हो न सकी दूरी-ए-मंज़िल ये अलग है

हर मोड़ पे रौशन रहा इम्काँ मिरे आगे

काँधे पे मिरे बोझ रहा रख़्त-ए-सफ़र का

यूँ निकला किए बे-सर-ओ-सामाँ मिरे आगे

जो सुल्ह-ओ-सफ़ाई में हैं पीछे अभी 'राही'

रहते हैं बहम दस्त-ओ-गरेबाँ मिरे आगे

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Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage In Hindi By Famous Poet Ghulam Murtaza Rahi. Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage is written by Ghulam Murtaza Rahi. Complete Poem Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage in Hindi by Ghulam Murtaza Rahi. Download free Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage Poem for Youth in PDF. Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage is a Poem on Inspiration for young students. Share Hain Aur Kai Ret Ke Tufan Mere Aage with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.