ग़ुलाम मुर्तज़ा राही कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
नाम | ग़ुलाम मुर्तज़ा राही |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Murtaza Rahi |
जन्म की तारीख | 1937 |
ज़बान अपनी बदलने पे कोई राज़ी नहीं
यूँही बुनियाद का दर्जा नहीं मिलता किसी को
ये लोग किस की तरफ़ देखते हैं हसरत से
ये दौर है जो तुम्हारा रहेगा ये भी नहीं
यारों ने मेरी राह में दीवार खींच कर
उस ने जब दरवाज़ा मुझ पर बंद किया
साँसों के आने जाने से लगता है
सहरा जंगल सागर पर्बत
रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
रख दिया वक़्त ने आईना बना कर मुझ को
रहेगा आईने की तरह आब पर क़ाएम
पुरखों से चली आती है ये नक़्ल-ए-मकानी
पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ
पहले चिंगारी उड़ा लाई हवा
न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की
मेरी पहचान बताने का सवाल आया जब
मेरी कश्ती को डुबो कर चैन से बैठे न तू
मैं तिरे वास्ते आईना था
कुछ ऐसे देखता है वो मुझे कि लगता है
कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता
कितना भी रंग-ओ-नस्ल में रखते हों इख़्तिलाफ़
किसी ने भेज कर काग़ज़ की कश्ती
किसी की राह में आने की ये भी सूरत है
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
कहाँ तक उस की मसीहाई का शुमार करूँ
जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर
जैसे कोई काट रहा है जाल मिरा
हुस्न-ए-अमल में बरकतें होती हैं बे-शुमार
हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा