ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का
कोई हँस दे तो मोहब्बत का गुमाँ होता है
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नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला
आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा
हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया
जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा
ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं
कोई मुँह फेर लेता है तो 'क़ासिर' अब शिकायत क्या
दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला