नाम लिख लिख के तिरा फूल बनाने वाला
आज फिर शबनमीं आँखों से वरक़ धोता है
Wasi Shah
Gulzar
Jaun Eliya
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Rahat Indori
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रात उस के सामने मेरे सिवा भी मैं ही था
लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं
उम्मीद की सूखती शाख़ों से सारे पत्ते झड़ जाएँगे
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया
हम तो वहाँ पहुँच नहीं सकते तमाम उम्र
आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले
कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो