सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो
सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो
शफ़्फ़ाफ़ पानियों पे कँवल का लिबास हो
अश्कों से बुन के मर्सिया पहना दिया गया
अब ज़िंदगी के तन पे ग़ज़ल का लिबास हो
हर एक आदमी को मिले ख़िलअत-ए-बशर
हर एक झोंपड़ी पे महल का लिबास हो
सुन ले जो आने वाले ज़माने की आहटें
कैसे कहे कि आज भी कल का लिबास हो
या रब किसी सदी के उफ़ुक़ पर ठहर न जाए
इक ऐसी सुब्ह जिस का धुँदलका लिबास हो
उजला रहेगा सिर्फ़ मोहब्बत के जिस्म पर
सदियों का पैरहन हो कि पल का लिबास हो
(997) Peoples Rate This