फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
चाँद जिन चार गवाहों को नज़र आया था
रंग फूलों ने चुने आप से मिलते जुलते
और बताते भी नहीं कौन इधर आया था
बूँद भी तिश्ना अबाबील पे नाज़िल न हुई
वर्ना बादल तो बुलंदी से उतर आया था
तू ने देखा ही नहीं वर्ना वफ़ा का मुजरिम
अपनी आँखें तिरी दहलीज़ पे धर आया था
भूल बैठे हैं नए ख़्वाब की सरशारी में
इस से पहले भी तो इक ख़्वाब नज़र आया था
(867) Peoples Rate This