पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
और फिर पूरी काएनात बना
हुस्न ने ख़ुद कहा मुसव्विर से
पाँव पर मेरे कोई हाथ बना
प्यास की सल्तनत नहीं मिटती
लाख दजले बना फ़ुरात बना
ग़म का सूरज वो दे गया तुझ को
चाहे अब दिन बना कि रात बना
शेर इक मश्ग़ला था 'क़ासिर' का
अब यही मक़्सद-ए-हयात बना
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