जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

वो शख़्स नज़र भर रुक न सका एहसास था दामन-गीर तो क्या

कुछ बनते मिटते दाएरे से इक शक्ल हज़ारों तस्वीरें

सब नक़्श-ओ-निगार उरूज पे थे आँखें थीं ज़वाल-पज़ीर तो क्या

ख़ुश हूँ कि किसी की महफ़िल में अर्ज़ां थी मता-ए-बेदारी

अब आँखें हैं बे-ख़्वाब तो क्या अब ख़्वाब हैं बे-ताबीर तो क्या

ख़्वाहिश के मुसाफ़िर तो अब तक तारीकी-ए-जाँ में चलते हैं

इक दिल के निहाँ-ख़ाने में कहीं जलता है चराग़-ए-ज़मीर तो क्या

सहरा-ए-तमन्ना में जिस के जीने का जवाज़ ही झोंके हों

उस रेत के ज़र्रों ने मिल कर इक नाम किया तहरीर तो क्या

लिखता हूँ तो पोरों से दिल तक इक चाँदनी सी छा जाती है

'क़ासिर' वो हिलाल-ए-हर्फ़ कभी हो पाए न माह-ए-मुनीर तो क्या

(800) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya In Hindi By Famous Poet Ghulam Mohammad Qasir. Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya is written by Ghulam Mohammad Qasir. Complete Poem Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya in Hindi by Ghulam Mohammad Qasir. Download free Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya Poem for Youth in PDF. Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya is a Poem on Inspiration for young students. Share Jazbon Ko Kiya Zanjir To Kya Taron Ko Kiya TasKHir To Kya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.