Islamic Poetry of Ghulam Maula Qalaq
नाम | ग़ुलाम मौला क़लक़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Maula Qalaq |
पड़ा है दैर-ओ-काबा में ये कैसा ग़ुल ख़ुदा जाने
क्यूँकर न आस्तीं में छुपा कर पढ़ें नमाज़
ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
कहिए क्या और फ़ैसले की बात
जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम