यारब तुझे फ़िक्र-ए-पा-ए-बंदी किया है
ना-चार की ओ नियाज़-मंदी क्या है
है ख़ालक़ी और आशिक़ी है और
पूछ हम ही से दर्द-ओ-दर्द-मंदी क्या है
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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Anwar Masood
Ahmad Faraz
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जब बाप मुआ तो फिर है बेटा क्या शय
तिरी नवेद में हर दास्ताँ को सुनते हैं
हर रोज़ ख़ुशी है शब-ए-ग़म से पामाल
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
बानो ने कहा क़तरा नहीं शीर का है
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम कैसे
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
न लगती आँख तो सोने में क्या बुराई थी
न ये है न वो है न मैं हूँ न तू है
आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़