दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
इस किश्त-ए-अबस का दाना दाना है अबस
इक हर्फ़-ए-ग़लत है बल्कि ये भी है ग़लत
हर ज़िक्र अबस है हर फ़साना है अबस
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तू देख तो उधर कि जो देखा न जाए फिर
कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ था
दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़
जी है ये बिन लगे नहीं रहता
उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
ऐ पर्दा-नशीं सहल हुआ ये इश्काल
किधर क़फ़स था कहाँ हम थे किस तरफ़ ये क़ैद
दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले
तुझ से ऐ ज़िंदगी घबरा ही चले थे हम तो
क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत