अफ़्साना-ए-यार बहर-ए-वसलत है लज़ीज़
पैमाना-ए-मय पए फ़राग़त है लज़ीज़
ऐ शैख़ है हर वक़्त तू रूखा-फीका
ये तुर्फ़ा मज़ाक़ है कि ताअ'त है लज़ीज़
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(758) Peoples Rate This
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
गली से अपनी इरादा न कर उठाने का
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना
है बस कि जवानी में बुढ़ापे का ग़म
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-उम्मीद
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम
बोसा देने की चीज़ है आख़िर