झगड़ा था जो दिल पे उस को छोड़ा
कुछ सोच के सुल्ह कर गए हम
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वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
कौन जाने था उस का नाम-ओ-नुमूद
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
फ़ानी के है नज़दीक बक़ा को भी फ़ना
तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
न ये है न वो है न मैं हूँ न तू है
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं