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है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला - ग़ुलाम मौला क़लक़ कविता - Darsaal

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

अस्त है एक चुप हज़ार बला

देख ले इक नज़र कि है मंज़ूर

सद-तबाही ओ सद-हज़ार बला

दिलबरी पर है जाँ-फ़ज़ा बे-दाद

दिल-दही पर है जाँ-निसार बला

हिज्र में आसमाँ मुदाराई

वस्ल में है सतीज़ा-कार बला

कज-कुलाही का हम-नशीं फ़ित्ना

ख़म-ए-गेसू की दोस्त-दार बला

आ गई सर पे आक़िबत आफ़त

हो गई चश्म-ए-इन्तिज़ार बला

है फ़िदा मुझ पे आसमाँ गोया

वार वार आई बार बार बला

मुझ सा पामाल-ए-रोज़गार है कौन

ख़जिल आफ़त है शर्म-सार बला

दाग़ का मेरे दर्द-कश सदमा

दर्द की मेरे राज़-दार बला

सेहन-ए-गुलशन की शम-ए-बज़्म है बर्क़

नौजवानी की है बहार बला

ऐ 'क़लक़' आसरे का क्या जीना

ज़िंदगी है मआल-ए-कार बला

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Hai KHamoshi-e-intizar Bala In Hindi By Famous Poet Ghulam Maula Qalaq. Hai KHamoshi-e-intizar Bala is written by Ghulam Maula Qalaq. Complete Poem Hai KHamoshi-e-intizar Bala in Hindi by Ghulam Maula Qalaq. Download free Hai KHamoshi-e-intizar Bala Poem for Youth in PDF. Hai KHamoshi-e-intizar Bala is a Poem on Inspiration for young students. Share Hai KHamoshi-e-intizar Bala with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.