Sad Poetry of Ghulam Husain Sajid (page 1)
नाम | ग़ुलाम हुसैन साजिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghulam Husain Sajid |
जन्म की तारीख | 1951 |
हासिल किसी से नक़्द-ए-हिमायत न कर सका
दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं
ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे
मेरी क़िस्मत है ये आवारा-ख़िरामी 'साजिद'
किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है
इश्क़ पर इख़्तियार है किस का
इश्क़ पर फ़ाएज़ हूँ औरों की तरह लेकिन मुझे
हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं
ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते
अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना
सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से
रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं
नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने
नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए
नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को
मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है
मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का
मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है
मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से
लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा
लहू की आग अगर जलती रहेगी
किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है
जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता
इश्क़ की दस्तरस में कुछ भी नहीं
हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं
हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का
होंटों पर है बात कड़ी ताज़ीरें भी
इक शम्अ' की सूरत में मंज़ूर किया जाऊँ