ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है
मगर मिरे ख़्वाब के नगर को चराग़ ने ख़ुश-गुमाँ किया है
सुनो कि मैं ने धरी है सतह-ए-रवाँ पे इक डोलती इमारत
और एक शम-ए-तरब को शहर-ए-मलाल का पासबाँ किया है
मुझे यक़ीं है ये सुब्ह-ए-नौ भी मिरे सितारे का साथ देगी
कि मैं ने इक इस्म की मदद से ग़ुबार को आसमाँ किया है
ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे
मगर मिरी बे-क़रार आँखों ने आइने का ज़ियाँ किया है
निगाह-ए-नम-नाक को लहू ने किया है मजबूर देखने पर
और एक रब्त-ए-ख़फ़ी को रस्म-ए-मुग़ाइरत ने जवाँ किया है
कहीं नहीं है मसाफ़त-ए-उम्र में किसी ख़्वाब का पड़ाव
सो मैं ने इस बे-कनार सहरा पे अब्र का साएबाँ किया है
सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है
(1166) Peoples Rate This