आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी
कुछ तो निस्बत चाहिए अंजाम को आग़ाज़ से
Habib Jalib
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1689) Peoples Rate This
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे
किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
दाना-ओ-दाम सँभाला मिरे सय्याद ने फिर
फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही
नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़
मिरे पहलू से जो निकले वो मिरी जाँ हो कर
कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो
महव-ए-दीद-ए-चमन-ए-शौक़ है फिर दीदा-ए-शौक़