कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

दिन मिरी ज़ीस्त के कुछ और बढ़ा जाते हो

इक झलक तुम जो लब-ए-बाम दिखा जाते हो

दिल पे इक कौंदती बिजली सी गिरा जाते हो

मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब

ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो

ताज़ा कर जाते हो तुम दिल में पुरानी यादें

ख़्वाब-ए-शीरीं से तमन्ना को जगा जाते हो

इतनी हम को भी दिखाते हो मसीहा-नफ़सी

हसरत-ए-मुर्दा को आ आ के जिला जाते हो

निगह-ए-लुत्फ़ में जादू है तुम्हारी जानाँ

सारे शिकवे-गिले इक पल में भुला जाते हो

शोला-ए-तूर से तू वादी-ए-ऐमन ही जला

तुम जहाँ आते हो इक आग लगा जाते हो

है तो 'नैरंग' वही इश्क़ का रोना-धोना

इन्ही बातों में नया रंग दिखा जाते हो

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