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दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है - ग़ुफ़रान अमजद कविता - Darsaal

दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है

दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है

यार कहीं बरसात ग़मों की होती है

बेचैनी में डूबे जुब्बा और दस्तार

फ़ाक़ा-मस्ती चादर तान के सोती है

प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते पीर फ़क़ीर

देख ग़रीबी क्या क्या दौलत खोती है

तेरा चेहरा दिन का दरिया पार करे

रात की सारी हलचल तुझ से होती है

जिस को माझी समझा उस की मल्लाही

साहिल साहिल मेरी नाव डुबोती है

धरती अम्बर नदिया नाले खाई पहाड़

दो मिसरों में क्या क्या रंग समोती है

उस से 'अमजद' बातें करना खेल है क्या

वो तो लहजे की इक सोई चुभोती है

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