ज़मीं की हद अगर कोई नहीं है

ज़मीं की हद अगर कोई नहीं है

तो फिर मेरा भी घर कोई नहीं है

क़फ़स में बंद है पर्वाज़ मेरी

उमीद-ए-बाल-ओ-पर कोई नहीं है

हुनर उन को सिखाता फिर रहा हूँ

मगर ख़ुद में हुनर कोई नहीं है

ख़बर अख़बार में आए न आए

ख़बर से बे-ख़बर कोई नहीं है

यहाँ तो बस पड़ाव है हमारा

हमारा अपना घर कोई नहीं है

ये शहर-ए-आरज़ू है 'ग़ौस' ऐसा

जहाँ हद्द-ए-नज़र कोई नहीं है

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