ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
बे-सबब होने लगी इक एक से अन-बन मिरी
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बच के दुनिया से घर चले आए
महा-भारत
हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया
हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है