रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ख़्वाबों का ये शौक़ हमें वीरानी दे कर जाएगा
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बच के दुनिया से घर चले आए
मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
हिजरत
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
तुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं
पत्थर
महा-भारत