मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को
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कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
महा-भारत
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
पत्थर
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
गंदुम की बालियाँ
अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा