हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है
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महा-भारत
गंदुम की बालियाँ
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
दर्द की कौन सी मंज़िल से गुज़रते होंगे
पत्थर
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं
मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
हिजरत
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव