दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
जीने की काविशों में बदन हाथ से गया
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पत्थर
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
नए आदमी का कंफ़ेशन
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
बच के दुनिया से घर चले आए
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
हिजरत
ज़वाल