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रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा - ग़ज़नफ़र कविता - Darsaal

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ख़्वाबों का ये शौक़ हमें वीरानी दे कर जाएगा

देख के सर पर गहरा बादल ख़ुश्क निगाहें कहती हैं

आज हमें ये अब्र यक़ीनन पानी दे कर जाएगा

कुछ ठहराव तो बे-शक उस से मेरे घर में आया है

लेकिन इक दिन मुझ को वो तुग़्यानी दे कर जाएगा

आएगा तो इक दो पल मेहमान रहेगा आँखों में

जाएगा तो इक क़िस्सा तूलानी दे कर जाएगा

काग़ज़ के ये फूल भी अपने चेहरों को फ़क़ पाएँगे

अब के मौसम इन को भी हैरानी दे कर जाएगा

खुश-मंज़र पे आँख जमाए बैठे हैं कि लगता है

रंग कोई बे-रंग नज़र को धानी दे कर जाएगा

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