कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं

कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं

कि घर आते हुए अपने को अक्सर छोड़ आते हैं

हमें रिश्तों से क्या मतलूब है आख़िर कि रोज़ाना

किसी से तोड़ आते हैं किसी से जोड़ आते हैं

न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं

वो आवाज़ें जिन्हें हम रोज़ बाहर छोड़ आते हैं

कोई तो मस्लहत होगी कि हम ख़ामोश बैठे हैं

हमें भी वर्ना उन के टोटकों के तोड़ आते हैं

चुभन सहते हैं उन की पर उन्हें खुलने नहीं देते

हमारे दरमियाँ ऐसे भी कुछ गठजोड़ आते हैं

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