दर्द की कौन सी मंज़िल से गुज़रते होंगे

दर्द की कौन सी मंज़िल से गुज़रते होंगे

ख़्वाब के पाँव ज़मीनों पे उतरते होंगे

हम कि मरबूत हुए और शिकस्ता हो कर

टूट कर कैसे भला लोग बिखरते होंगे

हम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं

लोग किस तरह समुंदर में उतरते होंगे

जाने क्या सोचती होंगी वो अँधेरी रातें

चाँद जब उन की निगाहों में उभरते होंगे

तुम झुलसते हो चटानों पे मगर जाने दो

कितने ही लोग मकानों में सँवरते होंगे

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