ग़ज़नफ़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ज़नफ़र
नाम | ग़ज़नफ़र |
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अंग्रेज़ी नाम | Ghazanfar |
हिजरत
नए आदमी का कंफ़ेशन
महा-भारत
ज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
तुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
मैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
मैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
कल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
हम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं
हर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
दफ़्तर में ज़ेहन घर निगह रास्ते में पाँव
बच के दुनिया से घर चले आए
अजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
ज़वाल
पत्थर
गंदुम की बालियाँ
ये तमन्ना नहीं कि मर जाएँ
यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है
तेज़ होती जा रही है किस लिए धड़कन मिरी
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
सामान-ए-ऐश सारा हमें यूँ तू दे गया
सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
किसी के नर्म तख़ातुब पे यूँ लगा मुझ को
ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ
कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं
दर्द की कौन सी मंज़िल से गुज़रते होंगे