Ghazal Poetry (page 464)
पस-ए-क़ाफ़िला जो ग़ुबार था कोई उस में नाक़ा-सवार था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
परेशाँ क्यूँ न हो जावे नज़ारा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
पाँव में क़ैस के ज़ंजीर भली लगती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
पहलू में रह गया यूँ ये दिल तड़प तड़प कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
पढ़ न ऐ हम-नशीं विसाल का शेर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ने ज़ख़्म-ए-ख़ूँ-चकाँ हूँ न हल्क़-ए-बुरीदा हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ने शहरियों में हैं न बयाबानियों में हम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ने बुत है न सज्दा है ने बादा न मस्ती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नज़र क्या आए ज़ात-ए-हक़ किसी को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नसीम-ए-सुब्ह-ए-चमन से इधर नहीं आती
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नसीबों से कोई गर मिल गया है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नर्मी-ए-बालिश-ए-पर हम को नहीं भाती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नख़्ल लाले जा जब ज़मीं से उठा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नहीं करती असर फ़रियाद मेरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
न वो वादा-ए-सर-ए-राह है न वो दोस्ती न निबाह है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
न समझो तुम कि मैं दीवाना वीराने में रहता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
न पूछ इश्क़ के सदमे उठाए हैं क्या क्या
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुँह छुपाओ न तुम नक़ाब में जान
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुद्दत से हूँ मैं सर-ख़ुश-ए-सहबा-ए-शाएरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मोहब्बत ने किया क्या न आनें निकालीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मियाँ सब्र-आज़माई हो चुकी बस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी