Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_88d4e327c8bff3228c8ffebf258b389a, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए - ग़यास मतीन कविता - Darsaal

सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए

सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए

आँगन बड़ा है अपने भी घर धूप चाहिए

आईने टूट टूट के बिखरे हैं चार-सू

ढूँडेंगे अक्स अक्स मगर धूप चाहिए

भीगे हुए परों से तो उड़ने न पाएँगे

काटूँ न उन परिंदों के पर धूप चाहिए

हम से दरीदा-पैरहन-ओ-जाँ के वास्ते

याक़ूत चाहिए न गुहर धूप चाहिए

सूरज न जाने कौन सी वादी में छुप गया

और चीख़ती फिरे है सहर धूप चाहिए

इक नींद है कि आँख से लग कर निकल गई

अब रात का तवील सफ़र धूप चाहिए

पानी पे चाहे नक़्श बनाए कोई 'मतीन'

काग़ज़ पे मैं बनाऊँ मगर धूप चाहिए

(731) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye In Hindi By Famous Poet Ghayas Mateen. Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye is written by Ghayas Mateen. Complete Poem Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye in Hindi by Ghayas Mateen. Download free Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye Poem for Youth in PDF. Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye is a Poem on Inspiration for young students. Share Suraj Ko Kya Pata Hai Kidhar Dhup Chahiye with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.