साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे
साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे
जब दिल ही बुझ गया हो तो फिर दिल कहें किसे
रूदाद-ए-ग़म तवील तो इतनी नहीं मगर
कोई कहाँ है मद्द-ए-मुक़ाबिल कहें किसे
बचते बचाते मौज-ए-हवादिस से आ के हम
साहिल पे डूब जाएँ तो साहिल कहें किसे
दस्त-ए-दुआ भी काट के अहबाब चल दिए
हाल-ए-दिल-ए-शिकस्ता में शामिल कहें किसे
'अंजुम' हमारा अहद है बहरूपियों का अहद
जो है नक़ाब-पोश है क़ातिल कहें किसे
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