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थकन ग़ालिब है दम टूटे हुए हैं - ग़नी एजाज़ कविता - Darsaal

थकन ग़ालिब है दम टूटे हुए हैं

थकन ग़ालिब है दम टूटे हुए हैं

सफ़र जारी क़दम टूटे हुए हैं

ब-ज़ाहिर तो हैं सालिम जिस्म-ओ-जाँ से

मगर अंदर से हम टूटे हुए हैं

अधूरे हैं यहाँ सारे के सारे

सभी तो बेश-ओ-कम टूटे हुए हैं

बुरा हो ए'तिमाद-ए-बाहमी का

कि सब क़ौल-ओ-क़सम टूटे हुए हैं

तअल्लुक़ टूटने को है जहाँ से

चलो कि बंद-ए-ग़म टूटे हुए हैं

ख़ुदा का घर न बख़्शा ज़ालिमों ने

कई दैर-ओ-हरम टूटे हुए हैं

उन्हें मुंसिफ़ नहीं क़ातिल कहो तुम

कि सब उन के क़लम टूटे हुए हैं

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