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कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा - ग़नी एजाज़ कविता - Darsaal

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

हासिल-ए-उम्र भी क्या है ग़म-ए-हासिल के सिवा

एक सन्नाटा मुसल्लत था गुज़रगाहों पर

ज़िंदगी थी भी कहाँ कूचा-ए-क़ातिल के सिवा

हर क़दम हादसे हर गाम मराहिल थे यहाँ

अपने क़दमों में हर इक शय रही मंज़िल के सिवा

था मिसाली जो ज़माने में समुंदर का सुकूत

कौन तूफ़ान उठाता रहा साहिल के सिवा

अपने मरकज़ से हर इक चीज़ गुरेज़ाँ निकली

लैला हर बज़्म में थी ख़ल्वत-ए-महमिल के सिवा

अपनी राहों में तो ख़ुद बोए हैं काँटे उस ने

दुश्मन-ए-दिल कि नहीं और कोई दिल के सिवा

अपनी तक़दीर था बरबाद-ए-मोहब्बत होना

महफ़िलें और भी थीं आप की महफ़िल के सिवा

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