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उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया - ग़मगीन देहलवी कविता - Darsaal

उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया

उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया

मैं वहाँ आप को ढूँडा तो मैं पाया न गया

गुम हुआ दिल मिरे पहलू से कि पाया न गया

शायद उस कूचे में जा उस से फिर आया न गया

दम-ब-ख़ुद हो के मुआ उस की नज़ाकत के सबब

आह-ओ-नाला भी मुझे उस को सुनाया न गया

उस ने इक रोज़ में सौ बार रुलाया मुझ को

मुझ से पर उस बुत-ए-ख़ुश-ख़ू को मनाया न गया

बाद इक उम्र के क्या तुझ से कहूँ ऐ 'ग़मगीं'

हाल-ए-दिल उस ने जो पूछा तो सुनाया न गया

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